साल 2020 कई मामलों में विशेष रहा है, चाहे वो कोरोना काल हो या फिर ज्योतिषिय दृष्टि से भी इस साल जो संयोग बना है वो करीब 165 साल पर बना है। दरअसल इस बार श्राद्ध पक्ष समाप्त होते ही अधिकमास लग जाएगा। जिसकी वजह से नवरात्र और पितृपक्ष के बीच करीब एक माह का अंतर आ जाएगा। आश्विन मास में मलमास लगना और एक महीने के बाद दुर्गा पूजा शुरू होना ये मामूली संयोग नहीं है।
वैसे हिंदु पंचाग की मानें तो अधिकमास जो कि हर तीन साल में एक बार लगता है, इसे अधिकमास, मलमास या पुरुषोत्तम मास के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू धर्म में इस माह का विशेष महत्व है। ज्योतिषियों व पंडितों की माने तो इस माह पूरे देशभर में कोई भी व्यक्ति धार्मिक कार्यों में लगा रहता है।

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अधिकमास का महत्व
हिंदु धर्म की मानें तो हर जीव पंचमहाभूतों से मिलकर बना है, जिसमें जल, अग्नि, आकाश, वायु और पृथ्वी सम्मिलित हैं। ये सभी प्रकृति का ही हिस्सा है। अधिकमास में समस्त धार्मिक कृत्यों, चिंतन- मनन, ध्यान, योग आदि के जरिए व्यक्ति अपने शरीर में समाहित इन पांचों तत्वों में संतुलन स्थापित करने का प्रयास करता है।
इस पूरे माह में व्यक्ति अपने धार्मिक और आध्यात्मिक प्रयासों के बाद अपनी भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति और निर्मलता के लिए उद्यत होता है यानि की इसे आप ऐसे समझ सकते हैं कि हर तीन साल में आने वाले इस अधिकमास के दौरान व्यक्ति जो प्रयास करता है उससे वह खुद को बाहर से स्वच्छ कर परम निर्मलता को प्राप्त कर नई उर्जा से भर जाता है। यही नहीं माना जाता है कि इस दौरान किए गए प्रयासों से समस्त कुंडली दोषों का भी निराकरण हो जाता है।
शास्त्रों की मानें तो अधिकमास में किए गए धार्मिक कार्यों का किसी भी अन्य माह में किए गए पूजा-पाठ से 10 गुना ज्यादा फल मिलता है यही कारण है कि हर कोई अपनी पूरी श्रद्धा और शक्ति के साथ इस मास में भगवान को प्रसन्न करने में जुट जाते हैं। आप सोच रहे होंगे कि अगर यह माह इतना पवित्र व प्रभावशाली है तो यह हर तीन साल में क्यों आता है? आखिर क्यों है यह इतना पवित्र? इन सभी सवालों का जवाब आपको इस लेख में मिलेगा ।
तीन साल में क्यों आता है अधिकमास ?
अब ये सवाल भी महत्वपूर्ण है, लेकिन बेहद कम लोग इसका उत्तर जानते हैं। इसे आप ऐसे समझ सकते हैं कि हिंदू कैलेंडर सूर्य मास और चंद्र मास की गणना के अनुसार चलता है। अधिकमास चंद्र वर्ष का एक अतिरिक्त भाग है जो कि ज्योतिषियों की माने तो हर 32 माह, 16 दिन और 8 घटी के में आता है। इसका प्राकट्य सूर्य वर्ष और चंद्र वर्ष के बीच अंतर का संतुलन बनाने के लिए होता है।
भारतीय गणना पद्धति के अनुसार प्रत्येक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, वहीं चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है। इन दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है, जो हर तीन वर्ष में लगभग 1 मास के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को पाटने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास अस्तित्व में आता है, जिसे अतिरिक्त होने के कारण अधिकमास का नाम दिया गया है।
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क्यों कहते हैं मल मास, पुरुषोत्तम मास ?
अधिकमास को लोग मलमास व पुरूषोत्तम मास के नाम से भी जानते हैं लेकिन इसके पीछे भी एक कारण है दरअसल हिंदू धर्म में अधिकमास के दौरान सभी पवित्र कर्म वर्जित माने गए हैं जिसकी वजह से यह अतिरिक्त होने के कारण यह मास मलिन होता है। यही वजह है कि इसे मलमास के नाम से जाना जाता है।
वहीं बात करें पुरुषोत्तम मास की तो पुरुषोत्तम भगवान विष्णु का ही एक नाम है इसलिए अधिकमास को पुरूषोत्तम मास के नाम से भी पुकारा जाता है। कहते हैं कि भारतीय मनीषियों ने अपनी गणना पद्धति से हर चंद्र मास के लिए एक देवता निर्धारित किए चूंकि अधिकमास सूर्य और चंद्र मास के बीच संतुलन बनाने के लिए प्रकट हुआ, तो इस अतिरिक्त मास का अधिपति बनने के लिए कोई देवता तैयार नहीं हुए ऐसे में भगवान विष्णु से आग्रह किया गया और वो इस मास का भार अपने ऊपर लेने को तैयार हो गए जिसकी वजह से इस पुरुषोत्तम मास माना जाने लगा।
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