हिंदू धर्म में कई सारे व्रत व त्योहार आते रहते हैं, वैसे अगर पंचाग की मानें तो हर माह के 11 वीं तिथि को एकादशी माना जाता है। एकादशी को भगवान विष्णु को समर्पित तिथि माना जाता है। एक महीने में दो पक्ष होने के कारण दो एकादशी होती हैं, ऐसे में देखा जाए तो एक साल में कुल 24 एकादशी होते हैं। लेकिन आज हम बात करेंगे आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की जिसे देवशयनी एकादशी भी कहते हैं।

देवशयनी एकादशी के व्रत का काफी महत्व है इसे कई लोग आषाढ़ी एकादशी, हरिशयनी और पद्मनाभा एकादशी आदि के नाम से भी जाना जाता है। हालांकि इसे भगवान विष्णु का शयन काल का समय भी माना जाता है। शास्त्रों व पुराणों में बताया गया है कि भगवान विष्णु चार मास के लिए क्षीरसागर में शयन करते हैं इसलिए इस दिन से चातुर्मास आरंभ हो जाता है और इस दौरान किसी भी तरह के शुभ कार्य विवाह आदि वर्जित माने जाते हैं। इस बार देवशयनी एकादशी 1 जुलाई को मनाई जाएगी।
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देवशयनी एकादशी का महत्व

हिंदू धर्म सभी पर्व व त्योहारों का महत्व ज्यादा है लेकिन बात करें देवशयनी एकादशी की तो मान्यता है कि इस व्रत को करने से भक्तों की सारी मनोकामना पूरी होती है और उनके सभी पाप का नाश हो जाता है। इस दिन मंदिर व मठ में विशेष रूप से पूजा किया जाता है। देवशयनी एकादशरी के दिन से भगवान विष्णु का शयन शुरू हो जाता है इसलिए इस दिन से पहले विधि-विधान से पूजन करने का बड़ा महत्व है, वहीं इस दिन श्रद्धालु व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा करते हैं।
पूजा विधि
बात करें देवशयनी एकादशी की तो इस दिन पूजा विधि का भी विशेष महत्व रहा है। शास्त्र पुराण के अनुसार इस दिन व्रत या उपवास रखने से भूल से भी किए गए पाप खत्म हो जाते हैं।
जो व्यक्ति देवशयनी एकादशी के दिन विधि-विधान से पूजा करते हैं तो मोक्ष की प्राप्ति होती है, ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार इस व्रत को करने से मनोकामना भी पूरी होती है।

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शास्त्रों में ये भी कहा गया है कि देवशयनी एकादशी से चातुर्मास शुरू हो जाता है और चार महीने के लिए 16 संस्कार रुक जाते हैं। हालांकि पूजन, अनुष्ठान, मरम्मत करवाए गए घर में गृह प्रवेश, वाहन व आभूषण खरीदी जैसे काम किए जा सकते हैं।
एकादशी के दिन सुबह सुबह उठकर घर की साफ-सफाई और नित्य कर्म करने के बाद, घर में गंगाजल से छिड़काव करें। घर के पूजा स्थल या किसी पवित्र स्थान पर भगवान श्री हरि विष्णु की सोने, चांदी, तांबे या कांसे की मूर्ति स्थापित करें। इसके बाद षोडशोपचार से उनकी पूजा करें और भगवान विष्णु को पीतांबर से सजाएं फिर व्रत कथा सुननी चाहिए और आरती कर के प्रसाद बांटें।
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